परंपरागत जल स्रोत बदहाल, सुधरने का इंतजार कब खत्म होगा?
पियूष शर्मा मुलताई (प्रतिनिधि) टाइम्स नाउ मध्यप्रदेश । जहां एक ओर प्रशासन जिलेभर में “जल गंगा संवर्धन अभियान” चला रहा है, वहीं दूसरी ओर पवित्र नगरी मुलताई में स्थित ताप्ती सरोवर, शनि सरोवर और पारंपरिक कुंडों की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। इन ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों पर न तो सफाई के पुख्ता इंतज़ाम हैं और न ही सुधार कार्यों की कोई गंभीर पहल नजर आ रही है।

सिर्फ शुरुआत में दिखा जोश, फिर सब ठंडा
जल संरक्षण अभियान की शुरुआत ताप्ती उद्गम स्थल से बड़े धूमधाम के साथ की गई थी। अधिकारियों ने निरीक्षण किया, फोटो खिंचवाए, सोशल मीडिया पर प्रचार हुआ — लेकिन कुछ ही दिनों में अभियान की गति धीमी पड़ गई। सरोवरों की सफाई अधूरी है, घाटों पर कचरे और झाड़ियों का अंबार है, और कुंडों में गंदा पानी जमा है।
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स्थानीय जनता का आक्रोश
स्थानीय रहवासी और पुजारी वर्ग खुलकर नाराजगी जता रहे हैं। “ताप्ती उद्गम जैसे आस्था के केंद्र की यह दशा शर्मनाक है,” एक बुजुर्ग नागरिक ने कहा। वहीं युवा वर्ग सवाल उठा रहा है कि यदि धार्मिक स्थलों की उपेक्षा ही करनी है तो फिर ‘संवर्धन अभियान’ महज दिखावा बनकर क्यों रह गया?
आस्थाओं के साथ खिलवाड़?
ताप्ती नदी का उद्गम स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह मुलताई की पहचान भी है। ऐसे में यहां के कुंड, सरोवर और घाटों की अनदेखी स्थानीय आस्थाओं के साथ खिलवाड़ माना जा रहा है।

कहां हैं विधायक और जनप्रतिनिधि?
प्रश्न यह भी उठता है कि जब यह सब जनता देख रही है तो फिर जनप्रतिनिधि मौन क्यों हैं? नगर पालिका से लेकर जिला पंचायत तक के जिम्मेदार अधिकारी भी इस ओर आंखें मूंदे बैठे हैं।
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जरूरत है ठोस कार्ययोजना की
अब समय आ गया है कि इन स्थलों के लिए एक दीर्घकालीन और ठोस कार्य योजना बने — जिसमें नियमित सफाई, सौंदर्यीकरण, और पारंपरिक जल स्रोतों के वैज्ञानिक तरीके से पुनरुद्धार की प्रक्रिया शामिल हो।
निष्कर्ष
जल संरक्षण केवल नारे लगाने या फोटो खिंचवाने से नहीं होगा। जब तक जमीनी हकीकत पर काम नहीं होगा, तब तक ताप्ती और शनि सरोवर जैसे धार्मिक स्थल उपेक्षा के गर्त में ही डूबे रहेंगे। जनता अब जवाब चाहती है —
“कब होगा ताप्ती, शनि सरोवर और कुंडों का सुधार कार्य?”