इस मौसम में किसान भाई रखे गेहूं,चना, सरसों के साथ अन्य फसलों की खेती का इस प्रकार विशेष ध्यान

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फसलों की खेती का इस प्रकार विशेष ध्यान

टाइम्स नाउ मध्य प्रदेश किसान समाचार :- किसान भाई अरहर, गेहूं, चना सहित अन्य रबी फसलों के लिए सलाह किसान विभिन्न फसलों की लागत कम कर अधिक पैदावार प्राप्त कर सकें इसके लिए कृषि विभाग एवं कृषि विश्वविद्यालयों के द्वारा समय-समय पर किसान हित में सलाह जारी की जाती है। विश्वविद्यालय द्वारा इस समय विभिन्न फसलों में लगने वाले कीट-रोग एवं उनके प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई है।

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इस प्रकार करे फसलों का निदान

कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किसानों को सलाह दी गई है कि वर्तमान में अरहर में फली बनने की अवस्था में फलबेधक इल्ली लगने की संभावना होने पर इनके प्रबंधन एवं निगरानी के लिए फेरोमोन ट्रैप एवं पक्षियों के बैठने के लिए टी-आकार की खुंटी लगाएं। फेरोमोन सेप्टा को प्रतिदिन 15 दिन में बदलें। अरहर में फली भेदक कीटों के नियंत्रण के लिए इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 353-400 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। आने वाले दिनों में मौसम साफ रहने की स्थिति में किसान भाई अरहर में कीटनाशक दवाई का छिड़काव कर सकते हैं।

इस मौसम में किसान भाई रखे गेहूं,चना, सरसों के साथ अन्य फसलों की खेती का इस प्रकार विशेष ध्यान

किसान चने की फसल

इस मौसम में चने की खेती को करने वाले ऐसे किसान जिन्होंने समय पर चने की बुआई की है वे किसान चने की फसल 15-20 सेमी की ऊंचाई होने या 35-40 दिन होने पर खुटाईं अवश्य करें। चना में लगने वाले इल्ली के प्रबंधन हेतु इल्ली परजीवी (ब्रेकोनिड) 6-8 कार्ड प्रति एकड़ उपयोग करें। किसान दलहन एवं तिलहन फसलों में माहू (एफिड) के प्रकोप की आशंका को देखते हुए इसके लिए सतत निगरानी रखें एवं प्रारंभिक प्रकोप दिखने पर नीम आधारित कीटनाशकों का छिड़काव करें। इस प्रकार चने की खेती पर सतत निगरानी रखी जा सकती है .

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सरसो की फसल को लेकर क्या है सम्भावनाये

सरसों रबी की प्रमुख तिलहनी फसल है जिसका भारत की अर्थ व्यवस्था में एक विशेष स्थान है। सरसों (लाहा) कृषकों के लिए बहुत लोक प्रिय होती जा रही है क्यों कि इससे कम सिंचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। इसकी खेती मिश्रित रूप में और बहु फसलीय फसल चक्र में आसानी से की जा सकती है।

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इन स्थानों पर की जाती है खेती

भारत वर्ष में क्षेत्रफल की दृष्टि से इसकी खेती प्रमुखता से राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड़, बिहार एवं पंजाब में की जाती है। जबकि उत्पादकता (1721 किलो प्रति हे.) की दृष्टि से हरियाणा प्रथम स्थान पर है। मध्यप्रदेश की उत्पादकता (1325 किलो प्रति हे.) वर्ष 2012-13 में थी। मध्यप्रदेश में इसकी खेती सफलता पूर्वक मुरैना, श्योपुर, भिंड़, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, दतिया, जबलपुर, कटनी, बालाघाट, छिंदवाडा़, सिवनी, मण्डला, डिण्डोरी, नरसिंहपुर, सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ, छतरपुर, रीवा, सीधी, सिंगरोली, सतना, शहडोल, उमरिया, इन्दौर, धार, झाबुआ, खरगोन, बडवानी, खण्डवा, बुरहानपुर, अलीराजपुर, उज्जैन, मंदसौर, नीमच, रतलाम, देवास, शाजापुर, भोपाल, सीहौर, रायसेन, विदिशा, राजगढ, होशंगाबाद, हरदा, बैतूल जिलों में होती है एवं इन जिलो में राई-सरसों के उत्पादन की एवं प्रचार प्रसार की असीम संभावनायें है।

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