हनुमान जयंती विशेष बड़ी मिन्नतो के बाद मंदिर तक पहुंची केरपानी के हनुमान जी की प्रतिमा नही गए झल्लार
हनुमान जयंती विशेष बड़ी मिन्नतो के बाद मंदिर तक पहुंची केरपानी के हनुमान जी की प्रतिमा नही गए झल्लार
मनोहर अग्रवाल खेड़ीसावलीगढ़
को नही जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो
प्रभु श्री राम के अत्यंत निकट रहने का अगर सौभाग्य मिला है तो मारुति नंदन श्री हनुमान जी को जो रामायण काल में प्रभु श्री राम के अवतार के समय वनवास के समय श्री राम के संकट मोचन बने वे ही आज हम सभी के संकट हरने के लिए आतुर है।
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बस जरूरत है उन्हे भावना से एक निष्ठ समर्पण की जिले के अनेक स्थानों पर संकट मोचन हनुमान जी के मंदिर है लेकिन केरपानी के संकट मोचन हनुमान जी की प्रतिमा का धरती के गर्भ से प्रगट होना और स्वप्न में दर्शन देना और फिर प्रगट स्थल पर चमत्कार दिखलाना अपने आप में एक विचित्र घटना है। केरपानी के मंदिर में विराजित संकट मोचन हनुमान जी की प्रतिमा कोई साधारण प्रतिमा नही है बल्कि प्रतिमा का ओज और तेज देखते ही बनता है।
हनुमान जयंती विशेष बड़ी मिन्नतो के बाद मंदिर तक पहुंची केरपानी के हनुमान जी की प्रतिमा नही गए झल्लार
केरपानी गांव से पूर्व दिशा की ओर दो किलोमीटर दूर गाड़ीझिरा नामक स्थान से प्रगट हुई प्रतिमा के विषय में बताया जाता है। लगभग 70वर्ष पूर्व झल्लार के भगवंत राव पटेल को हनुमान जी ने स्वप्न में आकर कहा मुझे यहां से मुझे ले जाकर स्थापित करे .
उन्होंने केरपानी के ग्रामीणों को सपने वाली बात बतलाई और सभी गड़ी झीरा नामक स्थान पर गए और प्रतिमा को भारी मशक्कत के बाद निकाला गया और 51बेलगाड़ियो जुताई कर नारियल और नींबू से पूजा पाठ कर प्रतिमा को केरपानी पर त वाडा मार्ग तक लाया गया लेकिन जब प्रतिमा को झल्लार ले जाने लगे तो वह प्रतिमा जगह से तिल भर भी नही हिली सभी ने एक राय होकर हनुमान जी को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया.
जब से इतना निर्माण हुआ लेकिन जिस स्थिति में प्रतिमा थी वैसे ही है सूरदास की लाठी बने संकट मोचन मंदिर परिसर में स्थित सूरदास की समाधि इस बात की याद दिलाती है।की सूरदास के जैसे हनुमान भक्त होना अब असंभव है।चिचोला ढाना गांव के आदिवासी सूरदास हनुमान जी के एक ऐसे भक्त हो गए जिन्होंने नेत्रहीन होने के बावजूद हनुमानजी की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर किया बताया जाता है .
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सूरदास ताप्ती नदी में स्नान कर पैदल ही केरपानी तक ताप्ती जल लेकर आते और हनुमान जी का अभिषेक करते थे प्रतिमा स्थल पर पहले सिर्फ एक चोपाल था वही एक कुआ भी था सूरदास इसी कुआ का पानी अपने हाथो से लेकर आते थे उन्होंने किसी का सहारा नही लिया अंत में वह बजरंगी में लीन हो गए.
कुछ दिनों बाद बैतूल के हरिभाऊ जेधे शिवप्रसाद राठौर आकोला के ढालुमल सेठ खेड़ी के बिहारी लाल अग्रवाल मिश्रीलाल सेठ ने मंदिर निर्माण करवाया तब से हनुमान जी के प्रताप से मंदिर का विकास और भक्तो का जमावड़ा अब देखते ही बनता है .
Contant Writter : Sahil Khandve